Thursday, June 17, 2010

और बो, महान बन गया ......>>> संजय कुमार

सुबह ८ बजे जैसे ही शुक्लाजी घर से दफ्तर के लिए निकलने को हुए , तभी अचानक एक चमचमाती हुई कार उनके घर के बाहर आकर रुकी , जिसे देखकर शुक्लाजी रुक गए ! तभी उस कार मैं से एक व्यक्ति जो सफ़ेद कुरता-पायजामा पहने हाँथ मैं सोने का ब्रासलेट, और मंहगी घडी, गले मैं सोने की मोटी चैन, आँखों पर काला चश्मा और मुंह मैं बनारसी पान चबाते हुए बाहर निकला और शुक्लाजी की तरफ बड़ने लगा ! शुक्लाजी अपनी जगह पर ही ठिठक कर रह गए ! गाडी बाला शुक्लाजी के पास आकर रुक गया ! और शुक्लाजी के पैरों की तरफ झुककर कहने लगा ! '' हम आपको आशीर्वाद लैबे आये हैं , आप ने हमे पहचानो नहीं ! हम हैं आपके ही मोहल्ले के जग्गू , लगता है आप हमको भूल गए '' तभी शुक्लाजी को अचानक ध्यान आया ! " अरे जग्गू तुम, तुम तो तो पहचान मैं ही नहीं आरहे भई , कितने बदल गए हो , और ये ठाट-बाट,ये गाडी सब कुछ , ये सब कैसे, और कहाँ थे तुम २-३ सालों से !" शुक्लाजी ने ५-६ सबालएक साथ ठोक दिए, आओ-आओ अन्दर आओ " तभी जग्गू बोला, "बस आपका आशीर्वाद है , भय्याजी हम पिछले २-३ साल से बम्बई मैं थे ! आज आपकी और अपने मोहल्ले की याद आई सो चले आये आपसे मिलबे ! लगता है आप दफ्तर जा रहे हैं , मैं आज शाम को अपने दोस्तों को एक पार्टी दे रहा हूँ ! हमारी तरफ से आपको निमंत्रण है ! हम शाम को आपसे मिलते हैं, वहीँ आपको सब कुछ बताते हैं " इतना कहकर जग्गू वहां से चला गया !शुक्लाजी रास्ते भर सोचते आये ! चलिए अब मैं इस जग्गू से आपका परिचय करवा दूं , आज का जगमोहन कभी हमारे शुक्लाजी के मोहल्ले मैं रहा करता था ! तब हम सब इसको एक चोर-उचक्का , गुंडा-मवाली , निकम्मा और कामचोर के रूप मैं जानते थे ! जिसे मोहल्ले मैं कोई भी पसंद नहीं करता था ! कारण था, की इसके ऊपर ना तो माँ-बाप का साया था और न ही कोई काम ! बस अपने दादाजी के साथ टूटी-फूटी झोंपड़ी मैं रहा करता था ! शुक्लाजी उस मोहल्ले मैं थोडा पड़े -लिखे ज्यादा थे ! सो यह उनकी थोड़ी-बहुत इज्जत किया करता था ! क्योंकि शुक्लाजी कभी कभी अच्छी सलाह भी दे दिया करते थे ! सो आज इस बात का अहसास हुआ की शायद, आज यह उनसे कोई राय मांगने आया है !

शाम को मुलाक़ात हुई , और दोनों के बीच बातों का सिलसिला शुरू हुआ ! '' अरे जग्गू कहाँ थे इतने दिनों तक , और यह ठाट-बाट इतनी जल्दी कैसे '' शुक्लाजी की बात सुन जग्गू बोल उठा , "बस भैयाजी अब आपसे मैं क्या छुपाऔं ," मोहल्ला छोड़ने के बाद मैं यहाँ वहां भटकते हुए बम्बई जा पहुंचा और वहां पर कुछ उलटे सीधे धंधे करने लगा और धीरे-धीरे पैसों का अम्बार लग गया , आज मेरे पास पैसा तो बहुत हो गया लेकिन कोई नाम नहीं हैं " अब मुझे यह दर लगने लगा है की यह पैसा अब मेरी मुसीबत बन गया है " कभी पुलिस का डर तो कभी भाई लोगों का खतरा (डी-कंपनी ) अब मैं क्या करूँ आप ही बताएं ! जिससे से मेरा नाम भी हो जाए और इन सब परेशानियों से बच जाऊं !और लोग मुझे पहचाने , और मेरा नाम हो जाये " इतना बोल जग्गू शांत हो गया ! अब शुक्लाजी भी मन ही मन कुछ सोचने लगे ! और थोडा सोचविचार कर बोले " देखो जग्गू आज के माहौल मैं आज के वातावरण मैं कोई भी भला आदमी इतनी जल्दी ना तो नाम कमा पाता है, और ना महान बन पाता है !फिर तुम ने तो कोई भलाई का काम भी नहीं किया , तुम्हारे पास अब एक ही जगह है जहाँ से तुम जल्दी महान बन जाओगे , " बो क्या शुक्लाजी " जग्गू बोला "यार जग्गू तुम राजनीति मैं क्यों नहीं चले जाते , आज के युग मैं यही एक जरिया है जहाँ तुम सुरक्षित हो " तुम किसी नेता की शरण मैं चले जाओ , और धीरे-धीरे राजनीती के सारे गुण सीख लो , यही तुम्हारे लिए अच्छा होगा ! तुम्हारे पैसे का भी सही उपयोग होगा , फिर ना तो तुम्हें पुलिस का डर होगा और ना भाइयों (डी-कम्पनी) का खतरा , आज इतने पैसे के साथ तुम सिर्फ यहीं सुरक्षित हो ! अगर तुम राजनीति मैं छा गए तो तुम बहुत जल्द महान भी बन जाओगे " इतनी बात सुन जग्गू तुरंत बोला , "धन्यवाद शुक्लाजी , मैं आपकी बात समझ गया " अंत मैं जग्गू और शुक्लाजी अपने गंतव्य को चले गए ! जग्गू मन ही मन महान बनने का सपना देखने लगा ! और जग्गू ने बही किया जो शुक्लाजी ने उन्हें बताया था ! जल्द ही जग्गू ने एक विख्यात नेता की शरण लेली और अपनी पैसे की पोटली उस नेता के सामने खोलदी , उस नेता ने पैसे के लिए उसे अपनी पार्टी का टिकट दे दिया ! और देखते ही देखते जग्गू ने अपनी तगड़ी पकड़ पार्टी मैं बना ली! और देश की सरकार मैं एक बड़ा मंत्री पद भी हासिल कर लिया ! क्योंकि हमारे जग्गू भैया तिकड़मी जो ठहरे सो सब कुछ बड़ी आसानी से हासिल कर लिया ! आज पूरा देश उन्हें एक महान नेता जगमोहन के रूप मैं जानता है !

यह कहानी है आज के कुछ महान नेताओं की जो पहले कभी, कुछ ना थे किन्तु पैसा , गुंडागर्दी , बेईमानी , भ्रष्टाचार और ना जाने कितने गलत तरीकों से आज देश मैं ऊंचे पदों पर एक महान व्यक्ति बन कर बैठे हैं ! आज बहुत से नेता राजनीती मैं आने से पहले क्या थे ! यह हम सब जानते हैं !

क्या वाकई मैं महानता इतनी सस्ती है , क्या आपको महान बनना है ........... तो अब देर ना कीजिये .....

धन्यवाद

3 comments:

  1. ऐसे ही लोगों से भरा है संसद...

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  2. ऐसे महान बनने से अच्छा तो साधारण इंसान बन कर जी लें।

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  3. दुर्भाग्य ये है कि इसे हास्य-व्यंग्य भी कह सकते हैं और आज की हकीकत भी.. बहुत ही सशक्त होती जा रही है लेखनी दिन-बा-दिन.. बधाई संजय जी..

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