Friday, November 9, 2012

कहीं दीप जले कहीं दिल ........>>> संजय कुमार

जहाँ सुख है वहां दुःख भी है , जहाँ हंसी है वहां गम भी है , गरीबी है तो अमीरी है , धूप है तो छाँव भी है आखिर ये सभी प्रकृति के नियम है , ये प्रकृति का एक ऐसा चक्र है जो समय के अनुसार बदलता रहता है ! ये बात अलग है कि , कुछ लोगों के जीवन में सुख का पलड़ा अधिक तो कुछ के जीवन में दुःख का पलड़ा अधिक होता है , सच तो ये है कि , ज्यादातर दुःख का ही पलड़ा भारी रहता है , क्योंकि .... छोड़ो जाने देते है , हम तो अपमे मुद्दे पर आते हैं ! हमारे आस-पास का माहौल अब पूरी तरह बदल गया है , आज हम अपने दुःख से ज्यादा कहीं पड़ौसी के सुखी होने से ज्यादा दुखी है , अगर हम ऐसा करते हैं तो हमारे लिए बहुत ही दुःख की बात है .. क्योंकि आज के समय में सुख हांसिल करना बहुत मुश्किल काम है , अच्छे-अच्छों का जीवन निकल जाता है एक पल के सुख के लिए ! हमारा गुस्सा तब जायज है जब कोई , हमें मिलने वाली खुशियों को हमसे छीनकर हमें दुःख देकर खुद खुशियों का हिस्सा बने ! मैं एक आम आदमी हूँ , एक आम  इन्सान हूँ ! आप भी मेरी तरह अपने आस-पास होने वाली कई घटनाओं से चिंतित और दुखी होंगे , क्योंकि उसका असर प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप से हम सभी के ऊपर पड़ता है ! हम यहाँ बात देश के हालातों पर, सरकारी नीतियों पर कर रहे हैं , आँख होते हुए भी अंधों की तरह सब कुछ देखने के बारे में बात कर रहे हैं , निर्धन, गरीब, भूखों की, कुपोषण के शिकार मासूम बच्चों की बात कर रहे हैं , अपने हक के एक-एक पैसे के लिए भटकते जरुरतमंदों की , अपनों द्वारा ठुकराए बुजुर्गों की , दर दर की ठोकर खाते आत्महत्या के लिए प्रेरित कई किसानों की , मौज करते सरकारी बाबुओं और अधिकारीयों की , देश को लूटते भ्रष्ट और घोटालेबाज मंत्रियों की बात कर रहे हैं जो देश को अब खुलकर लूट रहे हैं ! आज देश की आम जनता त्राहि-त्राहि कर रही हैं और हमारी सरकार घोड़े बेचकर सो रही है माफ़ कीजिये सो नहीं रही बल्कि वो तो मृत है और मृत किसी काम का नहीं होता ! इस देश में कोई भूख और कुपोषण से मर रहा है तो कोई पानी के लिए एक-दूसरे की जान का दुश्मन बन जाता हैं , कोई नौकरी के लिए दर-दर भटक रहा है तो कोई न्याय पाने के लिए अपनी एड़ियां घिस रहा है , सच तो ये है की स्थिती जस की तस है ! एक आम आदमी सुबह से लेकर शाम तक कड़ी मेहनत करता है तब कहीं जाकर वह अपने और अपने परिवार के लिए इस भीषण मेंहगाई के दौर में सिर्फ भोजन की व्यवस्था कर पाता हैं शायद कुछ को ये भी नसीब नहीं है ! एक आम आदमी अपना पूरा जीवन रोटी, कपड़ा और मकान के चक्कर में निकाल देता है ! वहीँ हमारी सरकार की लापरवाही जगजाहिर है इसके एक नहीं हजारों उदाहरण हैं जिन पर हम भी एक बार नहीं हजारों बार चर्चा कर चुके हैं ! लापरवाही के कारण हजारों लाखों टन अनाज सड़ जाता है और बर्बाद हो जाता है ! यह सब देखकर एक आम आदमी का दिल बहुत रोता है ! एक भिखारी सुबह से लेकर शाम तक भीख मांगकर दो मुट्ठी अनाज की दरकार में पूरा जीवन यूँ ही निकाल देता हैं ! देश में हर साल हजारों मौतें सिर्फ भूंख के कारण होती हैं ! कई राज्यों में आज भी, पोषित भोजन ना मिल पाने के कारण कई मासूम कुपोषण का शिकार हो रहे हैं ! ( ताजा आंकड़ों के अनुसार पूरे विश्व में 10 करोड़ बच्चे कुपोषण का शिकार हैं , और इसमें भारत की भी बड़ी भूमिका है )  इन सब पर हमारे सरकारी विभाग चैन से सो रहे हैं ! वहीँ देश की सरकार के झूठे वादे हमेशा की तरह कि, देश में सब कुछ ठीक हैं ! इस देश में करोड़ों परिवार ऐसे हैं जो एक एक रूपए इकठ्ठा करने में ही अपना पूरा जीवन निकाल देते हैं , सरकार उन पर टैक्स लगाकर सरकार का खजाना भारती हैं और बाद में वही खजाना सरकार की तिजोरियों से बाहर निकलकर देश से बाहर स्विस बैंकों में पहुँचता हैं ! देश में मंहगाई बढ़ गई  हैं जिससे आम जनता का जीना मुश्किल हो रहा हैं ! अरबों-खरबों का काला धन देश के बाहर पड़ा है और यहाँ आम जनता की जेब कट रही है ! 

गरीबों के राशन से अमीरों के गोदाम भरे पड़े हैं ...... 
सरकारी दुकानों पर आज भी बड़े - बड़े ताले पड़े हैं .....
सरकार के खजाने भी हैं भरे .......फिर भी    
गरीब वहीँ के वहीँ खड़े हैं ! 

इस दिवाली भी ऐसा होगा कि ,  कहीं  दीप जलेंगे तो , कहीं दिल 

धन्यवाद 

13 comments:

  1. वो तो सदियों से होता आया है।

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  2. बदलते वक़्त और तरक्की की होड़ ने इंसान को इंसानियत से काफी दूर कर रखा है...सफलता और स्वार्थ को कोई फासला नहीं रहा ...बस इंसानों का जंगल हो गया है मरो खाओ राज करो.

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  3. यह भी विडंबना ही है.....सबके घर रौशन हों ......

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  4. सभी के घर खुश हाल हो,,,,

    दीपक नगमे गा रहे,मस्ती रहे बिखेर
    सबके हिस्से है खुशी,हो सकती है देर.,,,,

    बहुत उम्दा अभिव्यक्ति ,,,,,

    RECENT POST:..........सागर


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  5. किसने छिटक दिये ये बीज असमानता के।

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  6. सुंदर रचना ॥

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  7. यथार्थ चित्रण ,सच है यही हालात हैं .......
    सोचने पर विवश करती कि आखिर सुधार कैसे होगा ,हालात कब बदलेंगे या बस यूँ ही ......

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  8. हमारी सरकार ना तो सो रही है और ना ही मृत है, वह पूर्णतया जीवित है, इस देश को लूटने के लिए।

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  9. बेह्तरीन अभिव्यक्ति . मधुर भाव लिये भावुक करती रचना
    बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति...

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  10. Baat to sach he. Aaspas is Tarah K ghatnaye aksar dekhi jaati rahi he Sir. I think sabkuch ignore karke hansi khunsi jivan jeena hi zindagi he. Aur dusro ko bhi khush rakhne K koshish karni chahiye. Kya pata kisi ek K khushi K vajah se mahol khushnuma go jaye.

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